वाहन लुटेरा गिरोह का पर्दाफाश, आठ सदस्य गिरफ्तार

रामगढ़ । रामगढ़ पुलिस ने अंतरराज्यीय वाहन लुटेरा गिरोह का पर्दाफाश किया है। पुलिस ने इस गिरोह के आठ सदस्यों को भी हथियार के साथ पकड़ा है। एसपी प्रभात कुमार ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि रामगढ़ जिले में पिछले दो महीने में दो बड़े वाहनों की लूट हुई थी। इसके अलावा चार दिन पहले शहर के एक पेट्रोल पंप को लूटने का प्रयास किया गया था। हालांकि इस पंप से भी कुछ रुपए लेकर भागने में लुटेरे सफल भी रहे थे। इसी अंतरराज्यीय लुटेरा गिरोह के सदस्यों के द्वारा रिलायंस पेट्रोल पंप पर हमला किया गया था।

एसपी ने बताया कि पकड़े गए अपराधियों में रामगढ़ थाना क्षेत्र के सिरका बुधबाजार निवासी देव कुमार रवानी उर्फ लल्ला रवानी, मनदीप साव, हजारीबाग जिले के बड़कागांव थाना क्षेत्र के जुगरा गांव निवासी भैरव कुमार साव, रांची जिले के सुखदेव नगर थाना क्षेत्र के अल्कापुरी निवासी अमित कुमार चौरसिया, बोकारो जिले के जरीडीह थाना के पुटकाडीह निवासी चांद रशीद अंसारी, शाहबाज अंसारी, धनबाद जिले के झरिया थाना क्षेत्र के बागा बाजार निवासी अफाक आलम उर्फ ललन खान और दीपक रवानी शामिल हैं। इनके पास से पुलिस ने एक देसी कट्टा, चार गोलियां और चार मोबाइल जब्त किया है। एसपी ने बताया कि 21 अक्टूबर 2019 को हेसला से एक 12 चक्का ट्रक इस गिरोह ने लूटा था और उसे धनबाद में बेचा था। इसके अलावा एक दिसंबर को इन लोगों ने एक हाईवा को लूटकर उसे बिहार में बेच दिया था। इन दोनों गाड़ियों की बरामदगी कर ली गई है।

फिल्मी स्टाइल में होती थी गाड़ियों की लूट और डिलीवरी

एसपी ने बताया कि यह गिरोह काफी शातिर था और फिल्मी स्टाइल में गाड़ियों की लूट करता था। यहां तक कि गाड़ियों के डिलीवरी भी बॉलीवुड स्टाइल में होती थी। यह अंतरराज्यीय वाहन लुटेरा गिरोह तीन लेयर में काम करता था। पहले लेयर के सदस्य गाड़ियों को चिन्हित कर उसे उठाते थे। इस दौरान उन्हें किसी को मारना पड़े तो भी वह हिचकिचाते नहीं थे। वह गाड़ियों को दूसरी टीम के द्वारा बताए गए स्थान पर लगाकर छोड़ देते थे। लूट की गाड़ी दो-तीन दिन तक वहीं पर खड़ी रहती थी। इस बीच अगर वहां कोई पुलिस की रेड नहीं पड़ी, तो फिर दूसरे लेयर में शामिल गिरोह के सदस्य उसे लेकर बेचने के लिए धनबाद ले जाते थे। धनबाद में बैठा इनका खरीदार भी इनसे गाड़ी को किसी स्थान पर लगाकर छोड़ देने का बात करता था। बाद में वहां से भी दो-तीन दिन के बाद गाड़ी दूसरे राज्य में बेच दी जाती थी। इस बीच उस गाड़ी के नाम पर फर्जी पेपर भी बना लिया जाता था। इस गिरोह का पर्दाफाश करना काफी मुश्किल था। क्योंकि 3 लेयर में काम कर रहे अपराधी कभी भी किसी पॉइंट पर एक दूसरे से बात नहीं करते थे। 

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